श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 18: श्रीराम के टाल देने पर शूर्पणखा का लक्ष्मण से प्रणययाचना करना, फिर उनके भी टालने पर उसका सीता पर आक्रमण और लक्ष्मण का उसके नाक-कान काट लेना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.18.5 
 
 
एनं भज विशालाक्षि भर्तारं भ्रातरं मम।
असपत्ना वरारोहे मेरुमर्कप्रभा यथा॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  विस्तृत नयनों वाली वरारोहे! सूर्य की किरणें जिस प्रकार मेरु पर्वत पर प्रकाश डालती हैं, उसी प्रकार तुम मेरे इस छोटे भाई लक्ष्मण को पति रूप में अपनाकर सौत के भय से मुक्त होकर इनकी सेवा करो।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.