श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 18: श्रीराम के टाल देने पर शूर्पणखा का लक्ष्मण से प्रणययाचना करना, फिर उनके भी टालने पर उसका सीता पर आक्रमण और लक्ष्मण का उसके नाक-कान काट लेना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.18.2 
 
 
कृतदारोऽस्मि भवति भार्येयं दयिता मम।
त्वद्विधानां तु नारीणां सुदु:खा ससपत्नता॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
   आदरणीय देवी! मैं पहले से ही विवाहित हूँ। मेरी एक प्यारी पत्नी है। तुम्हारे जैसी स्त्रियों के लिए सौत होना बहुत दुःखदायी होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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