श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 18: श्रीराम के टाल देने पर शूर्पणखा का लक्ष्मण से प्रणययाचना करना, फिर उनके भी टालने पर उसका सीता पर आक्रमण और लक्ष्मण का उसके नाक-कान काट लेना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.18.17 
 
 
इत्युक्त्वा मृगशावाक्षीमलातसदृशेक्षणा।
अभ्यगच्छत् सुसंक्रुद्धा महोल्का रोहिणीमिव॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार कहकर, आग के अंगारों की तरह चमकती आँखों वाली शूर्पणखा बहुत क्रोधित हो गई और हिरण की आँखों वाली सीता पर झपटी, जैसे कोई बड़ी उल्का रोहिणी नक्षत्र पर गिर रही हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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