श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 18: श्रीराम के टाल देने पर शूर्पणखा का लक्ष्मण से प्रणययाचना करना, फिर उनके भी टालने पर उसका सीता पर आक्रमण और लक्ष्मण का उसके नाक-कान काट लेना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.18.14 
 
 
सा रामं पर्णशालायामुपविष्टं परंतपम्।
सीतया सह दुर्धर्षमब्रवीत् काममोहिता॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  वह काम मोह में फंसी हुई उस पर्णशाला में श्रीराम चन्द्र जी के पास लौट आईं, जो सीता जी के साथ बैठे हुए थे और शत्रुओं को संताप देने वाले दुर्जय वीर थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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