श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 18: श्रीराम के टाल देने पर शूर्पणखा का लक्ष्मण से प्रणययाचना करना, फिर उनके भी टालने पर उसका सीता पर आक्रमण और लक्ष्मण का उसके नाक-कान काट लेना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.18.10 
 
 
समृद्धार्थस्य सिद्धार्था मुदितामलवर्णिनी।
आर्यस्य त्वं विशालाक्षि भार्या भव यवीयसी॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  विस्तृत नेत्रों वाली सुंदरी! मेरे बड़े भाई सभी ऐश्वर्यों से परिपूर्ण हैं। तुम उनकी छोटी पत्नी बन जाओ। इससे तुम्हारे सभी मनोरथ पूर्ण हो जाएँगे और तुम सदैव प्रसन्न रहोगी। तुम्हारे रूप-रंग उन्हीं के लिए निर्मल हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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