श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 17: श्रीराम के आश्रम में शूर्पणखा का आना, उनका परिचय जानना और अपना परिचय देकर उनसे अपने को भार्या के रूप में ग्रहण करने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 9-10
 
 
श्लोक  3.17.9-10 
 
 
सुमुखं दुर्मुखी रामं वृत्तमध्यं महोदरी॥ ९॥
विशालाक्षं विरूपाक्षी सुकेशं ताम्रमूर्धजा।
प्रियरूपं विरूपा सा सुस्वरं भैरवस्वना॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम का मुख सुन्दर था, परन्तु शूर्पणखा का मुख बहुत ही कुरूप और भद्दा था। श्रीराम का शरीर सुडौल था, जबकि शूर्पणखा का कमर क्षीण और पेट बहुत बड़ा था। श्रीराम की आँखें बड़ी और आकर्षक थीं, परन्तु शूर्पणखा की आँखें कुरूप और भयावह थीं। श्रीराम के केश चिकने और सुंदर थे, जबकि शूर्पणखा के बाल तांबे की तरह लाल और कठोर थे। श्रीराम का रूप मनभावन था, जबकि शूर्पणखा का रूप घिनौना और भयावह था। श्रीराम मधुर स्वर में बोलते थे, जबकि शूर्पणखा कर्कश और भयंकर स्वर में बोलती थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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