श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 17: श्रीराम के आश्रम में शूर्पणखा का आना, उनका परिचय जानना और अपना परिचय देकर उनसे अपने को भार्या के रूप में ग्रहण करने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.17.7 
 
 
दीप्तास्यं च महाबाहुं पद्मपत्रायतेक्षणम्।
गजविक्रान्तगमनं जटामण्डलधारिणम्॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  उनका चेहरा बहुत उज्ज्वल था, भुजाएँ बहुत लंबी थीं, उनकी आँखें सुंदर और पूर्ण रूप से विकसित कमल की पंखुड़ियों की तरह थीं। वो हाथी की तरह धीमी गति से चलते थे। उन्होंने अपने सिर पर जटाएँ रखी हुई थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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