श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 17: श्रीराम के आश्रम में शूर्पणखा का आना, उनका परिचय जानना और अपना परिचय देकर उनसे अपने को भार्या के रूप में ग्रहण करने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 3-4
 
 
श्लोक  3.17.3-4 
 
 
उवास सुखितस्तत्र पूज्यमानो महर्षिभि:।
स राम: पर्णशालायामासीन: सह सीतया॥ ३॥
विरराज महाबाहुश्चित्रया चन्द्रमा इव।
लक्ष्मणेन सह भ्रात्रा चकार विविधा: कथा:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  वहाँ सीता के साथ प्रभु श्रीराम सुख पूर्वक रहने लगे थे। उन दिनों बड़े-बड़े ऋषि-मुनि आकर वहाँ उनका सत्कार करते थे। पर्णशाला में सीता के साथ बैठे हुए श्रीराम चित्रा नक्षत्र के साथ चमकते चन्द्रमा की तरह शोभायमान हो रहे थे। वे अपने भाई लक्ष्मण के साथ वहाँ तरह-तरह की बातें किया करते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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