श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 17: श्रीराम के आश्रम में शूर्पणखा का आना, उनका परिचय जानना और अपना परिचय देकर उनसे अपने को भार्या के रूप में ग्रहण करने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  3.17.29 
 
 
इत्येवमुक्त: काकुत्स्थ: प्रहस्य मदिरेक्षणाम्।
इदं वचनमारेभे वक्तुं वाक्यविशारद:॥ २९॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम काकुत्स्थवंश के रत्न थे और वे बोलने में बहुत ही चतुर थे। शूर्पणखा के ऐसा कहते ही वह जोर-जोर से हँसने लगे, फिर उन्होंने उस मतवाले नेत्रों वाली राक्षसी से इस प्रकार कहना शुरू किया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे सप्तदश: सर्ग:॥ १७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें सत्रहवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ १७॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.