श्रीराम काकुत्स्थवंश के रत्न थे और वे बोलने में बहुत ही चतुर थे। शूर्पणखा के ऐसा कहते ही वह जोर-जोर से हँसने लगे, फिर उन्होंने उस मतवाले नेत्रों वाली राक्षसी से इस प्रकार कहना शुरू किया।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे सप्तदश: सर्ग:॥ १७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें सत्रहवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ १७॥