श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 17: श्रीराम के आश्रम में शूर्पणखा का आना, उनका परिचय जानना और अपना परिचय देकर उनसे अपने को भार्या के रूप में ग्रहण करने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.17.24 
 
 
तानहं समतिक्रान्तां राम त्वापूर्वदर्शनात्।
समुपेतास्मि भावेन भर्तारं पुरुषोत्तमम्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम! तुमने अपनी वीरता और शौर्य से अपने सभी भाइयों को पीछे छोड़ दिया है। तुम्हें पहली बार देखते ही मेरा मन तुमसे आसक्त हो गया था। आज तक मैंने देवताओं में भी किसी का ऐसा रूप नहीं देखा था, तुम्हारा रूप अद्वितीय है। इसलिए मैं तुम जैसे श्रेष्ठ पुरुष के प्रति पत्नी की भावना रखकर प्रेमपूर्वक तुम्हारे निकट आई हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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