श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 17: श्रीराम के आश्रम में शूर्पणखा का आना, उनका परिचय जानना और अपना परिचय देकर उनसे अपने को भार्या के रूप में ग्रहण करने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  3.17.19-20 
 
 
साब्रवीद् वचनं श्रुत्वा राक्षसी मदनार्दिता॥ १९॥
श्रूयतां राम तत्त्वार्थं वक्ष्यामि वचनं मम।
अहं शूर्पणखा नाम राक्षसी कामरूपिणी॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम जी ने जब यह बात कही तो वह राक्षसी कामदेव के वश में होकर, क्षुब्ध होकर बोली - हे श्रीराम! मैं सब कुछ सच-सच बता रही हूँ, तुम मेरी बात सुनो। मेरा नाम शूर्पणखा है और मैं इच्छानुसार कोई भी रूप धारण करने वाली राक्षसी हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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