साब्रवीद् वचनं श्रुत्वा राक्षसी मदनार्दिता॥ १९॥
श्रूयतां राम तत्त्वार्थं वक्ष्यामि वचनं मम।
अहं शूर्पणखा नाम राक्षसी कामरूपिणी॥ २०॥
अनुवाद
श्रीराम जी ने जब यह बात कही तो वह राक्षसी कामदेव के वश में होकर, क्षुब्ध होकर बोली - हे श्रीराम! मैं सब कुछ सच-सच बता रही हूँ, तुम मेरी बात सुनो। मेरा नाम शूर्पणखा है और मैं इच्छानुसार कोई भी रूप धारण करने वाली राक्षसी हूँ।