श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 17: श्रीराम के आश्रम में शूर्पणखा का आना, उनका परिचय जानना और अपना परिचय देकर उनसे अपने को भार्या के रूप में ग्रहण करने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.17.14 
 
 
एवमुक्तस्तु राक्षस्या शूर्पणख्या परंतप:।
ऋजुबुद्धितया सर्वमाख्यातुमुपचक्रमे॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  शूर्पणखा के इस प्रकार पूछने पर श्रीरामचंद्रजी ने अपने सहज सरल स्वभाव के कारण उसको सब कुछ बताना आरम्भ किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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