श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 16: लक्ष्मण के द्वारा हेमन्त ऋतु का वर्णन और भरत की प्रशंसा तथा श्रीराम का उन दोनों के साथ गोदावरी नदी में स्नान  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  3.16.38 
 
 
निश्चितैव हि मे बुद्धिर्वनवासे दृढव्रता।
भरतस्नेहसंतप्ता बालिशीक्रियते पुन:॥ ३८॥
 
 
अनुवाद
 
  यद्यपि मेरी बुद्धि निश्चय करके वन में रहने के कठोर व्रत का पालन करने की ओर प्रवृत्त है, फिर भी भरत जी के स्नेह से व्याकुल होकर वह बार-बार चंचल हो जाती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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