श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 16: लक्ष्मण के द्वारा हेमन्त ऋतु का वर्णन और भरत की प्रशंसा तथा श्रीराम का उन दोनों के साथ गोदावरी नदी में स्नान  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.16.27 
 
 
अस्मिंस्तु पुरुषव्याघ्र काले दु:खसमन्वित:।
तपश्चरति धर्मात्मा त्वद्भक्त्या भरत: पुरे॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  पुरुषश्रेष्ठ श्री राम, इस समय धर्मनिष्ठ भरत आपके लिए अत्यधिक दुखी है और आपमें भक्ति रखते हुए नगर में ही तपस्या कर रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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