श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 16: लक्ष्मण के द्वारा हेमन्त ऋतु का वर्णन और भरत की प्रशंसा तथा श्रीराम का उन दोनों के साथ गोदावरी नदी में स्नान  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.16.25 
 
 
तुषारपतनाच्चैव मृदुत्वाद् भास्करस्य च।
शैत्यादगाग्रस्थमपि प्रायेण रसवज्जलम्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  तुषारपात के कारण और सूर्य की किरणों के मंद होने से उत्पन्न अतिशय शीतलता के कारण पर्वत की चोटी पर स्थित जल भी अधिकतर स्वादिष्ट लगता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.