श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 16: लक्ष्मण के द्वारा हेमन्त ऋतु का वर्णन और भरत की प्रशंसा तथा श्रीराम का उन दोनों के साथ गोदावरी नदी में स्नान  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.16.24 
 
 
बाष्पसंछन्नसलिला रुतविज्ञेयसारसा:।
हिमार्द्रवालुकैस्तीरै: सरितो भान्ति साम्प्रतम्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  वर्तमान समय में नदियों का जल वाष्प से आच्छादित है। इनमें विचरण करने वाले सारस केवल अपने कलरवों से ही पहचाने जाते हैं और ये नदियाँ भी ओस से भीगी हुई बालू वाले अपने तटों से ही प्रकाश में आती हैं (जल से नहीं)।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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