श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 16: लक्ष्मण के द्वारा हेमन्त ऋतु का वर्णन और भरत की प्रशंसा तथा श्रीराम का उन दोनों के साथ गोदावरी नदी में स्नान  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  3.16.21 
 
 
स्पृशन् सुविपुलं शीतमुदकं द्विरद: सुखम्।
अत्यन्ततृषितो वन्य: प्रतिसंहरते करम्॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  वन्य हाथी प्यासा है। वह ठंडे पानी की बूंदों को हर्षित होकर छूता है। परन्तु पानी की ठंडक सहन नहीं कर पाने के कारण अपनी सूंड़ तुरंत हटा लेता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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