श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 16: लक्ष्मण के द्वारा हेमन्त ऋतु का वर्णन और भरत की प्रशंसा तथा श्रीराम का उन दोनों के साथ गोदावरी नदी में स्नान  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  3.16.20 
 
 
अवश्यायनिपातेन किंचित्प्रक्लिन्नशाद्वला।
वनानां शोभते भूमिर्निविष्टतरुणातपा॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  ओस की बूँदों के गिरने से जहाँ की घासें थोड़ी-बहुत भीगी हुई सी जान पड़ती हैं, वहाँ का वन-प्रदेश उगते हुए सूर्य की किरणों के पड़ने से अद्भुत शोभा को प्राप्त हो रहा है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.