ज्योत्स्ना तुषारमलिना पौर्णमास्यां न राजते।
सीतेव चातपश्यामा लक्ष्यते न च शोभते॥ १४॥
अनुवाद
इन दिनों पौर्णिमा की चांदनी रात भी ओस की बूंदों से मैली दिखाई देती है, चमक नहीं पाती। ठीक उसी तरह, जैसे सीता ज्यादा धूप लगने से सांवली लगती है, पहले वाली खूबसूरती नहीं पा पाती।