श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 15: पञ्चवटी के रमणीय प्रदेश में श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण द्वारा सुन्दर पर्णशाला का निर्माण तथा उसमें सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का निवास  »  श्लोक 4-5
 
 
श्लोक  3.15.4-5 
 
 
रमते यत्र वैदेही त्वमहं चैव लक्ष्मण।
तादृशो दृश्यतां देश: संनिकृष्टजलाशय:॥ ४॥
वनरामण्यकं यत्र जलरामण्यकं तथा।
संनिकृष्टं च यस्मिंस्तु समित्पुष्पकुशोदकम्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण! हमें ऐसा स्थान खोजना चाहिए जहाँ पर पानी का स्रोत पास हो, जहाँ पर विदेह-नंदिनी सीता रानी को अच्छा लगे और जहाँ हम सब सुख से रह सकें। वो जगह जहाँ वन और जल का रमणीय दृश्य हो, और उसके पास ही यज्ञ की समिधा, सुंदर फूल, कुश और पानी सब आसानी से मिल जाएँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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