श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 15: पञ्चवटी के रमणीय प्रदेश में श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण द्वारा सुन्दर पर्णशाला का निर्माण तथा उसमें सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का निवास  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.15.27 
 
 
सुसंहृष्ट: परिष्वज्य बाहुभ्यां लक्ष्मणं तदा।
अतिस्निग्धं च गाढं च वचनं चेदमब्रवीत्॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  तब भगवान श्री रामचंद्रजी ने हर्ष से परिपूर्ण होकर लक्ष्मणजी को दोनों भुजाओं से हृदय से लगा लिया और बड़े प्रेम से यह वचन कहा—।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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