श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 15: पञ्चवटी के रमणीय प्रदेश में श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण द्वारा सुन्दर पर्णशाला का निर्माण तथा उसमें सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का निवास  »  श्लोक 21-23
 
 
श्लोक  3.15.21-23 
 
 
पर्णशालां सुविपुलां तत्र संघातमृत्तिकाम्।
सुस्तम्भां मस्करैर्दीर्घै: कृतवंशां सुशोभनाम्॥ २१॥
शमीशाखाभिरास्तीर्य दृढपाशावपाशिताम्।
कुशकाशशरै: पर्णै: सुपरिच्छादितां तथा॥ २२॥
समीकृततलां रम्यां चकार सुमहाबल:।
निवासं राघवस्यार्थे प्रेक्षणीयमनुत्तमम्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  उस आश्रम के बनाने का तरीका यह था कि सबसे पहले महाबली लक्ष्मण ने दीवार खड़ी की, फिर उसमें मजबूत खम्भे लगाये। उसके बाद बाँसों को तिरछे करके ऊपर रखा, जिससे कुटी देखने में बहुत सुंदर लगने लगी। फिर उन बाँसों पर उन्होंने शमी वृक्ष की शाखाएँ फैला दीं और उन्हें मजबूत रस्सियों से बाँध दिया, फिर ऊपर से कुश, कास, सरकंडे और पत्ते बिछाए, जिससे पर्णशाला छा गई। इसके बाद लक्ष्मण ने भूमि को समतल किया, जिससे कुटी अत्यंत रमणीय दिखने लगी। इस प्रकार लक्ष्मण ने भगवान श्रीराम के लिए एक बहुत ही सुंदर और आरामदायक निवास बना दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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