श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 15: पञ्चवटी के रमणीय प्रदेश में श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण द्वारा सुन्दर पर्णशाला का निर्माण तथा उसमें सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का निवास  »  श्लोक 16-18
 
 
श्लोक  3.15.16-18 
 
 
सालैस्तालैस्तमालैश्च खर्जूरै: पनसैर्द्रुमै:।
नीवारैस्तिनिशैश्चैव पुन्नागैश्चोपशोभिता:॥ १६॥
चूतैरशोकैस्तिलकै: केतकैरपि चम्पकै:।
पुष्पगुल्मलतोपेतैस्तैस्तैस्तरुभिरावृता:॥ १७॥
स्यन्दनैश्चन्दनैर्नीपै: पर्णासैर्लकुचैरपि।
धवाश्वकर्णखदिरै: शमीकिंशुकपाटलै:॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  ये पर्वत साल, ताल, तमाल, खजूर, कटहल, जलकदम्ब, तिनिश, पुनाग, आम, अशोक, तिलक, केवड़ा, चम्पा, स्यन्दन, चन्दन, कदम्ब, पर्णास, लकुच, धव, अश्वकर्ण, खैर, शमी, पलाश और पाटल (पाडर) वृक्षों से घिरे हुए हैं और इन पर फूल, झाड़ियाँ और लताएँ उगी हुई हैं। इन पेड़ों की शाखाओं पर फूल खिले हुए हैं और लताएँ लिपटी हुई हैं। पर्वत पर उगने वाले ये वृक्ष रंग-बिरंगे हैं और इन पर तरह-तरह के फूल खिले हुए हैं। इन पेड़ों की खुशबू हवा में फैली हुई है और चारों ओर एक मनमोहक वातावरण बना हुआ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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