हंसकारण्डवाकीर्णा चक्रवाकोपशोभिता।
नातिदूरे न चासन्ने मृगयूथनिपीडिता॥ १३॥
अनुवाद
इस नदी में हंस, कारण्डव और अन्य जलपक्षी स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। चकवे इस नदी की शोभा को और बढ़ा रहे हैं। पानी पीने के लिए आए हुए मृगों के झुंड भी इसके तट पर छाए रहते हैं। यह नदी इस स्थान से बहुत दूर नहीं है, लेकिन बहुत पास भी नहीं है।