श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 15: पञ्चवटी के रमणीय प्रदेश में श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण द्वारा सुन्दर पर्णशाला का निर्माण तथा उसमें सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का निवास  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  3.15.13 
 
 
हंसकारण्डवाकीर्णा चक्रवाकोपशोभिता।
नातिदूरे न चासन्ने मृगयूथनिपीडिता॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  इस नदी में हंस, कारण्डव और अन्य जलपक्षी स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। चकवे इस नदी की शोभा को और बढ़ा रहे हैं। पानी पीने के लिए आए हुए मृगों के झुंड भी इसके तट पर छाए रहते हैं। यह नदी इस स्थान से बहुत दूर नहीं है, लेकिन बहुत पास भी नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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