श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 14: पञ्चवटी के मार्ग में जटायु का मिलना और श्रीराम को अपना विस्तृत परिचय देना  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  3.14.36 
 
 
स तत्र सीतां परिदाय मैथिलीं
सहैव तेनातिबलेन पक्षिणा।
जगाम तां पञ्चवटीं सलक्ष्मणो
रिपून् दिधक्षन् शलभानिवानल:॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनंतर भगवान राम ने मिथिलेश की राजकुमारी सीता को उनके संरक्षण के लिए लक्ष्मण और अति बलशाली पक्षी जटायु के साथ पंचवटी की ओर प्रस्थान किया। श्री रामचंद्र जी मुनि के विरोधी राक्षसों को शत्रु समझकर उन्हें उसी प्रकार जलाकर भस्म करना चाहते थे, जैसे आग पतंगों को जलाकर भस्म कर देती है।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे चतुर्दश: सर्ग:॥ १४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें चौदहवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ १४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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