श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 14: पञ्चवटी के मार्ग में जटायु का मिलना और श्रीराम को अपना विस्तृत परिचय देना  »  श्लोक 12-13h
 
 
श्लोक  3.14.12-13h 
 
 
तास्तु कन्यास्तत: प्रीत: कश्यप: पुनरब्रवीत्॥ १२॥
पुत्रांस्त्रैलोक्यभर्तॄन् वै जनयिष्यथ मत्समान्।
 
 
अनुवाद
 
  तदोपरांत उन कन्याओं से संतुष्ट होकर कश्यप ऋषि ने पुनः उनसे कहा – “देवियो! तुम ऐसी संतान को जन्म दोगी जो तीनों लोकों का भरण-पोषण करने में समर्थ होंगी और मेरे समान तेजस्वी होंगी”।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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