श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 13: महर्षि अगस्त्य का सीता की प्रशंसा करना, श्रीराम के पूछने पर उन्हें पञ्चवटी में आश्रम बनाकर रहने का आदेश देना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.13.7 
 
 
इयं तु भवतो भार्या दोषैरेतैर्विवर्जिता।
श्लाघ्या च व्यपदेश्या च यथा देवीष्वरुन्धती॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  यह तुम्हारी धर्मपत्नी सीता इन दोषों से सर्वथा रहित है। स्तुत्य (प्रशंसनीय) है और उसी प्रकार पतिव्रताओं में अग्रगण्य हैं, जैसे देवी अरुन्धती देवियों में अग्रगण्य हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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