एषा हि प्रकृति: स्त्रीणामासृष्टे रघुनन्दन।
समस्थमनुरज्यन्ते विषमस्थं त्यजन्ति च॥ ५॥
अनुवाद
रघुनन्दन ! सृष्टि के आरम्भ से ही स्त्रियों का स्वभाव ऐसा रहा है कि यदि उनके पति उनकी तरह ही सम्पन्न, स्वस्थ और सुखी होते हैं, तो वे उनसे प्रेम करती हैं। लेकिन, जैसे ही उनके पति विषम परिस्थितियों में पड़ जाते हैं, जैसे कि गरीबी या बीमारी, तो वे उन्हें त्याग देती हैं।