श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 13: महर्षि अगस्त्य का सीता की प्रशंसा करना, श्रीराम के पूछने पर उन्हें पञ्चवटी में आश्रम बनाकर रहने का आदेश देना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.13.5 
 
 
एषा हि प्रकृति: स्त्रीणामासृष्टे रघुनन्दन।
समस्थमनुरज्यन्ते विषमस्थं त्यजन्ति च॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन ! सृष्टि के आरम्भ से ही स्त्रियों का स्वभाव ऐसा रहा है कि यदि उनके पति उनकी तरह ही सम्पन्न, स्वस्थ और सुखी होते हैं, तो वे उनसे प्रेम करती हैं। लेकिन, जैसे ही उनके पति विषम परिस्थितियों में पड़ जाते हैं, जैसे कि गरीबी या बीमारी, तो वे उन्हें त्याग देती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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