श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 13: महर्षि अगस्त्य का सीता की प्रशंसा करना, श्रीराम के पूछने पर उन्हें पञ्चवटी में आश्रम बनाकर रहने का आदेश देना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.13.25 
 
 
गृहीतचापौ तु नराधिपात्मजौ
विषक्ततूणी समरेष्वकातरौ।
यथोपदिष्टेन पथा महर्षिणा
प्रजग्मतु: पञ्चवटीं समाहितौ॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  राजनंदन श्रीराम और लक्ष्मण ने अपनी पीठ पर तीर के बाण लटकाए और हाथ में धनुष ले लिया। वे दोनों युद्ध के मैदान में डरने वाले नहीं थे। दोनों भाई ऋषि के बताए हुए मार्ग का अनुसरण करते हुए सावधानी से पंचवटी की ओर बढ़ चले।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे त्रयोदश: सर्ग:॥ १३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें तेरहवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ १३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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