श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 13: महर्षि अगस्त्य का सीता की प्रशंसा करना, श्रीराम के पूछने पर उन्हें पञ्चवटी में आश्रम बनाकर रहने का आदेश देना  »  श्लोक 21-22
 
 
श्लोक  3.13.21-22 
 
 
एतदालक्ष्यते वीर मधूकानां महावनम्।
उत्तरेणास्य गन्तव्यं न्यग्रोधमपि गच्छता॥ २१॥
तत: स्थलमुपारुह्य पर्वतस्याविदूरत:।
ख्यात: पञ्चवटीत्येव नित्यपुष्पितकानन:॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  वीर! यह जो महुओं का विशाल वन दिखाई देता है, इसके उत्तर की ओर से जाना चाहिए। उस मार्ग से जाते हुए आगे एक बरगद का वृक्ष मिलेगा। उससे आगे कुछ दूर तक ऊँचा मैदान है, उसे पार करने के बाद एक पर्वत दिखाई देगा। उस पर्वत से थोड़ी ही दूरी पर पञ्चवटी नामक सुंदर वन है, जो हमेशा फूलों से सुशोभित रहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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