हृदयस्थं च ते च्छन्दो विज्ञातं तपसा मया।
इह वासं प्रतिज्ञाय मया सह तपोवने॥ १६॥
अनुवाद
‘हे मुनिश्रेष्ठ! अब मैं आपके हृदय की इच्छा जान गया हूँ। आपने तपोवन में मेरे साथ रहने और वनवास का शेष समय यहाँ बिताने की इच्छा प्रकट की है, पर अब आप मुझसे अन्यत्र रहने योग्य स्थान के विषय में पूछ रहे हैं। इसका आपके मन में क्या कारण है? यह मैंने अपने तपोबल से जान लिया है कि आपने ऋषियों की रक्षा के लिए राक्षसों के वध की प्रतिज्ञा की है। इस प्रतिज्ञा का निर्वाह अन्यत्र रहने से ही हो सकता है। क्योंकि यहाँ राक्षसों का आना-जाना नहीं होता।