श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 13: महर्षि अगस्त्य का सीता की प्रशंसा करना, श्रीराम के पूछने पर उन्हें पञ्चवटी में आश्रम बनाकर रहने का आदेश देना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.13.16 
 
 
हृदयस्थं च ते च्छन्दो विज्ञातं तपसा मया।
इह वासं प्रतिज्ञाय मया सह तपोवने॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘हे मुनिश्रेष्ठ! अब मैं आपके हृदय की इच्छा जान गया हूँ। आपने तपोवन में मेरे साथ रहने और वनवास का शेष समय यहाँ बिताने की इच्छा प्रकट की है, पर अब आप मुझसे अन्यत्र रहने योग्य स्थान के विषय में पूछ रहे हैं। इसका आपके मन में क्या कारण है? यह मैंने अपने तपोबल से जान लिया है कि आपने ऋषियों की रक्षा के लिए राक्षसों के वध की प्रतिज्ञा की है। इस प्रतिज्ञा का निर्वाह अन्यत्र रहने से ही हो सकता है। क्योंकि यहाँ राक्षसों का आना-जाना नहीं होता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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