श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 13: महर्षि अगस्त्य का सीता की प्रशंसा करना, श्रीराम के पूछने पर उन्हें पञ्चवटी में आश्रम बनाकर रहने का आदेश देना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  3.13.15 
 
 
विदितो ह्येष वृत्तान्तो मम सर्वस्तवानघ।
तपसश्च प्रभावेण स्नेहाद् दशरथस्य च॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  निश्चिंत रहो, हे अनघ! मैं तपस्या के प्रभाव और राजा दशरथ के प्रति स्नेह के कारण तुम्हारे और दशरथ के इस पूरे वृत्तांत से भली-भाँति परिचित हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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