श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 13: महर्षि अगस्त्य का सीता की प्रशंसा करना, श्रीराम के पूछने पर उन्हें पञ्चवटी में आश्रम बनाकर रहने का आदेश देना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.13.10 
 
 
धन्योऽस्म्यनुगृहीतोऽस्मि यस्य मे मुनिपुंगव:।
गुणै: सभ्रातृभार्यस्य गुरुर्न: परितुष्यति॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  हाँ, मैं पूर्णतया धन्य हूँ और मेरी बहुत बड़ी कृपा हुई है कि हमारे गुरुदेव, मुनिवर अगस्त्य जी मेरे गुणों से मुझपर तथा मेरे भाई और पत्नी पर बहुत प्रसन्न हैं। इस प्रकार मुनीश्वर ने हमपर महान अनुग्रह किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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