श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 12: श्रीराम आदि का अगस्त्य के आश्रम में प्रवेश, अतिथि-सत्कार तथा मुनि की ओर से उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की प्राप्ति  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.12.4 
 
 
ते वयं वनमत्युग्रं प्रविष्टा: पितृशासनात्।
द्रष्टुमिच्छामहे सर्वे भगवन्तं निवेद्यताम्॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  हम सभी लोग अपने पिता की आज्ञा से इस घने और भयभीत करने वाले जंगल में आए हैं। हम सभी ऋषि अगस्त्य से मिलना चाहते हैं। कृपया आप उन तक यह समाचार पहुँचा दें।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.