श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 12: श्रीराम आदि का अगस्त्य के आश्रम में प्रवेश, अतिथि-सत्कार तथा मुनि की ओर से उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की प्राप्ति  »  श्लोक 35-36
 
 
श्लोक  3.12.35-36 
 
 
अनेन धनुषा राम हत्वा संख्ये महासुरान्।
आजहार श्रियं दीप्तां पुरा विष्णुर्दिवौकसाम्॥ ३५॥
तद्धनुस्तौ च तूणी च शरं खड्गं च मानद।
जयाय प्रतिगृह्णीष्व वज्रं वज्रधरो यथा॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
 
  हे राम! प्राचीन काल में भगवान विष्णु ने इसी धनुष से युद्ध में भयंकर असुरों का संहार कर देवताओं की चमकती लक्ष्मी को उनके अधिकार में लौटाया था। हे माननीय! आप विजय प्राप्त करने के लिए इस धनुष, इन दोनों तरकसों, इन बाणों और इस तलवार को ग्रहण करें। ठीक उसी प्रकार, जैसे वज्रधारी इन्द्र वज्र को ग्रहण करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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