श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 12: श्रीराम आदि का अगस्त्य के आश्रम में प्रवेश, अतिथि-सत्कार तथा मुनि की ओर से उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की प्राप्ति  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.12.27 
 
 
अग्निं हुत्वा प्रदायार्घ्यमतिथीन् प्रतिपूज्य च।
वानप्रस्थेन धर्मेण स तेषां भोजनं ददौ॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  अगस्त्यजी ने सबसे पहले अग्नि में आहुति दी और फिर वानप्रस्थ धर्म के अनुसार अर्घ्य दिया और अतिथियों का विधिवत पूजन करके उनके लिए भोजन कराया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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