श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 12: श्रीराम आदि का अगस्त्य के आश्रम में प्रवेश, अतिथि-सत्कार तथा मुनि की ओर से उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की प्राप्ति  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  3.12.26 
 
 
प्रतिगृह्य च काकुत्स्थमर्चयित्वाऽऽसनोदकै:।
कुशलप्रश्नमुक्त्वा च आस्यतामिति सोऽब्रवीत्॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  महर्षि वशिष्ठ ने भगवान श्री राम को हृदय से लगाया और आसन तथा जल (पाद्य, अर्घ्य आदि) देकर उनका स्वागत-सत्कार किया। फिर कुशल-मंगल पूछकर उन्हें बैठने को कहा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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