प्रतिगृह्य च काकुत्स्थमर्चयित्वाऽऽसनोदकै:।
कुशलप्रश्नमुक्त्वा च आस्यतामिति सोऽब्रवीत्॥ २६॥
अनुवाद
महर्षि वशिष्ठ ने भगवान श्री राम को हृदय से लगाया और आसन तथा जल (पाद्य, अर्घ्य आदि) देकर उनका स्वागत-सत्कार किया। फिर कुशल-मंगल पूछकर उन्हें बैठने को कहा।