श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 12: श्रीराम आदि का अगस्त्य के आश्रम में प्रवेश, अतिथि-सत्कार तथा मुनि की ओर से उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की प्राप्ति  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.12.23 
 
 
बहिर्लक्ष्मण निष्क्रामत्यगस्त्यो भगवानृषि:।
औदार्येणावगच्छामि निधानं तपसामिमम्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  "हे लक्ष्मण! भगवान् अगस्त्य मुनि आश्रम से बाहर आ रहे हैं। वे तपस्या के निधान हैं। उनकी तेजस्विता से ही मुझे पता चलता है कि वे अगस्त्यजी हैं।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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