श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 12: श्रीराम आदि का अगस्त्य के आश्रम में प्रवेश, अतिथि-सत्कार तथा मुनि की ओर से उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की प्राप्ति  »  श्लोक 18-21h
 
 
श्लोक  3.12.18-21h 
 
 
विष्णो: स्थानं महेन्द्रस्य स्थानं चैव विवस्वत:।
सोमस्थानं भगस्थानं स्थानं कौबेरमेव च॥ १८॥
धातुर्विधातु: स्थानं च वायो: स्थानं तथैव च।
स्थानं च पाशहस्तस्य वरुणस्य महात्मन:॥ १९॥
स्थानं तथैव गायत्र्या वसूनां स्थानमेव च।
स्थानं च नागराजस्य गरुडस्थानमेव च॥ २०॥
कार्तिकेयस्य च स्थानं धर्मस्थानं च पश्यति।
 
 
अनुवाद
 
  क्रमश: भगवान विष्णु, इंद्र, सूर्य, चंद्रमा, भग, कुबेर, धाता, विधाता, वायु, पाशधारी महात्मा वरुण, गायत्री, वसु, नागराज अनंत, गरुड़, कार्तिकेय और धर्मराज के अलग-अलग स्थानों का निरीक्षण किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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