श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 12: श्रीराम आदि का अगस्त्य के आश्रम में प्रवेश, अतिथि-सत्कार तथा मुनि की ओर से उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की प्राप्ति  »  श्लोक 10-12h
 
 
श्लोक  3.12.10-12h 
 
 
दिष्टॺा रामश्चिरस्याद्य द्रष्टुं मां समुपागत:॥ १०॥
मनसा कांक्षितं ह्यस्य मयाप्यागमनं प्रति।
गम्यतां सत्कृतो राम: सभार्य: सहलक्ष्मण:॥ ११॥
प्रवेश्यतां समीपं मे किमसौ न प्रवेशित:।
 
 
अनुवाद
 
  सौभाग्य की बात है कि आज चिरकाल के बाद श्रीरामचन्द्र जी स्वयं ही मुझसे मिलने के लिए आ गए। मेरे मन में भी बहुत दिनों से यह अभिलाषा थी कि वे एक बार मेरे आश्रम पर पधारें। पत्नी सहित श्रीराम और लक्ष्मण का सत्कारपूर्वक आश्रम के भीतर मेरे समीप ले आओ। तुम इतने समय से उन्हें क्यों नहीं लाए?’
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.