श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 93
 
 
श्लोक  3.11.93 
 
 
यक्षत्वममरत्वं च राज्यानि विविधानि च।
अत्र देवा: प्रयच्छन्ति भूतैराराधिता: शुभै:॥ ९३॥
 
 
अनुवाद
 
  यहाँ पर सत्कर्म करने वाले प्राणियों की पूजा करने वाले देवता उन्हें यक्षत्व, अमरत्व और विभिन्न प्रकार के राज्य प्रदान करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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