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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
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श्लोक 91
श्लोक
3.11.91
अत्र देवाश्च यक्षाश्च नागाश्च पतगै: सह।
वसन्ति नियताहारा धर्ममाराधयिष्णव:॥ ९१॥
अनुवाद
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यहाँ धर्म की आराधना करने के लिये देवता, यक्ष, नाग और पक्षी निवास करते हैं और वे सभी नियमित रूप से आहार करते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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