श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 90
 
 
श्लोक  3.11.90 
 
 
नात्र जीवेन्मृषावादी क्रूरो वा यदि वा शठ:।
नृशंस: पापवृत्तो वा मुनिरेष तथाविध:॥ ९०॥
 
 
अनुवाद
 
  यह ऋषि इतने प्रभावशाली हैं कि इनके आश्रम में कोई भी व्यक्ति झूठ नहीं बोल सकता, क्रूरता नहीं कर सकता और न ही कोई पापाचारी व्यक्ति वहाँ जीवित रह सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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