श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 89
 
 
श्लोक  3.11.89 
 
 
अत्र देवा: सगन्धर्वा: सिद्धाश्च परमर्षय:।
अगस्त्यं नियताहारा: सततं पर्युपासते॥ ८९॥
 
 
अनुवाद
 
  देवता, गंधर्व, सिद्ध और महर्षि नियमित भोजन करके यहाँ हमेशा अगस्त्य मुनि की पूजा करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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