श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 88
 
 
श्लोक  3.11.88 
 
 
आराधयिष्याम्यत्राहमगस्त्यं तं महामुनिम्।
शेषं च वनवासस्य सौम्य वत्स्याम्यहं प्रभो॥ ८८॥
 
 
अनुवाद
 
  सेवा करने में समर्थ सौम्य लक्ष्मण! यहाँ रहकर मैं उन महान ऋषि अगस्त्य की पूजा करूँगा और वनवास के शेष दिन यहीं रहकर बिताऊँगा। प्रभो! यहाँ रहकर, मैं उस महामुनि अगस्त्य की आराधना करूँगा, और वनवास के शेष दिन इसी स्थान पर रहकर बिताऊँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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