श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 87
 
 
श्लोक  3.11.87 
 
 
एष लोकार्चित: साधुर्हिते नित्यं रत: सताम्।
अस्मानधिगतानेष श्रेयसा योजयिष्यति॥ ८७॥
 
 
अनुवाद
 
  वेदव्यास कृत श्रीमद्भागवत महापुराण के सप्तम स्कन्ध में वर्णित इस श्लोक का भावार्थ है कि महर्षि अगस्त्य सभी लोकों में पूजनीय हैं और वे सदैव सज्जनों के हित में लगे रहते हैं। जो लोग उनके पास आते हैं, उन्हें वे अपने आशीर्वाद से कल्याण का भागी बनाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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