श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 86
 
 
श्लोक  3.11.86 
 
 
अयं दीर्घायुषस्तस्य लोके विश्रुतकर्मण:।
अगस्त्यस्याश्रम: श्रीमान् विनीतमृगसेवित:॥ ८६॥
 
 
अनुवाद
 
  अयम् अगस्त्य ऋषि बहुत दीर्घायु हैं। उनके कर्म तीनों लोकों में विख्यात हैं। यह वही अगस्त्य ऋषि का आश्रम है, जो बहुत ही सुंदर है और विनीत मृगों द्वारा सेवा किया जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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