श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 83
 
 
श्लोक  3.11.83 
 
 
यदाप्रभृति चाक्रान्ता दिगियं पुण्यकर्मणा।
तदाप्रभृति निर्वैरा: प्रशान्ता रजनीचरा:॥ ८३॥
 
 
अनुवाद
 
  आचार्य अगस्त्य के इस दिशा में पदार्पण करने के बाद से यहाँ रहने वाले रात के जीव-जन्तु शत्रुता छोड़कर शांत हो गए हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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