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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन
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श्लोक 81-82
श्लोक
3.11.81-82
निगृह्य तरसा मृत्युं लोकानां हितकाम्यया।
दक्षिणा दिक् कृता येन शरण्या पुण्यकर्मणा॥ ८१॥
तस्येदमाश्रमपदं प्रभावाद् यस्य राक्षसै:।
दिगियं दक्षिणा त्रासाद् दृश्यते नोपभुज्यते॥ ८२॥
अनुवाद
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ऋषि अगस्त्य ने पुण्य कर्मों के द्वारा मृत्यु रूपी राक्षसों का वेग से नाश करके लोकों का हित किया और इस दक्षिण दिशा को शरण लेने योग्य बना दिया। इनके तेज से राक्षस इस दक्षिण दिशा से डरते हैं और इसका उपभोग भी नहीं करते। यही उनका आश्रम है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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