श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 11: पञ्चाप्सर तीर्थ एवं माण्डकर्णि मुनि की कथा, विभिन्न आश्रमों में घूमकर श्रीराम आदि का सुतीक्ष्ण के आश्रम में आना तथा अगस्त्य के प्रभाव का वर्णन  »  श्लोक 80
 
 
श्लोक  3.11.80 
 
 
प्राज्यधूमाकुलवनश्चीरमालापरिष्कृत:।
प्रशान्तमृगयूथश्च नानाशकुनिनादित:॥ ८०॥
 
 
अनुवाद
 
  आश्रम का वन यज्ञों और यागों के धुएँ से भरा हुआ है। पेड़ों पर चीरवस्त्र लटके हुए हैं, जो उसकी शोभा बढ़ाते हैं। यहाँ के हिरणों के झुंड हमेशा शांत रहते हैं और आश्रम में हर तरह के पक्षियों का चहचहाना गूंजता रहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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